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क्या है पोर्टफोलियो री-बैलेंसिंग? इसे करना क्यों ज़रूरी है?

क्या है पोर्टफोलियो री-बैलेंसिंग? इसे करना क्यों ज़रूरी है?
Bharti
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किसी भी शेयर में पैसा लगाने से पहले इन्वेस्टर अपने निवेश लक्ष्यों, रिस्क लेने की क्षमता और मार्केट कंडीशन का ज़रूर ध्यान रखता है और इन्हीं को ध्यान में रखते हुए यह तय करता है कि उसे किस एसेट में कितना पैसा लगाना है। लेकिन शेयर बाज़ार में उतार-चढ़ाव होना लाज़मी है और इसके चलते फंड की वैल्यू भी बदल जाती है। जिस वजह से इन्वेस्टर ने शुरूआत में जो एसेट एलोकेशन किया था, उसमें बदलाव आ जाता है। एसेट एलोकेशन को बनाए रखने के लिए फाइनेंशियल एक्सपर्ट पोर्टफोलियो को री-बैलेंंस करने की सलाह देते हैं। आखिर यह पोर्टफोलियो री-बैलेंसिंग क्या होती है? (portfolio rebalancing meaning) और इसे करना क्यों ज़रूरी है? आइए जानते हैं:-

पोर्टफोलियो री-बैलेंसिंग क्या होती है ?

समय-समय पर एसेट क्लास के प्रदर्शन में बदलाव आता है, किसी एसेट में शानदार रिटर्न मिलता है, तो किसी का रिटर्न नेगेटिव हो जाता है। इसके अलावा, कई बार किसी एसेट को खरीदने-बेचने की वजह से हमारे पोर्टफोलियो में बदलाव आ जाता है। ऐसा होने पर शुरूआत में जिस हिसाब से एसेट को एलोकेट किया था, वो वैसा नहीं रहता। जब आप एसेट एलोकेशन (Asset allocation) को वापस उसी लेवल पर लाने के लिए उसमें चेंजेस करते हैं, तो इसे री-बैलेंसिंग के नाम से जाना जाता है।

इसे एक उदाहरण से समझते हैं: मान लीजिए आपने अपने पोर्टफोलियो का 60% हिस्सा इक्विटी (equity) में और बाकी 40% हिस्सा डेट में लगाया है। अब मार्केट में गिरावट आने की वजह से इक्विटी की हिस्सेदारी में 15% की कमी आ जाती है, वहीं डेट में पॉजिटिव रिटर्न देखने को मिलता है। इससे आपके एक्चुअल एलोकेशन में बदलाव आ जाता है। इक्विटी का हिस्सा 45% रह जाता है, वहीं डेट 55% हो जाता है। अब अगर आप अपने फाइनेंशियल गोल को ध्यान में रखकर अपने ऑरिजनल प्लान के हिसाब से 60 पर्सेंट इन्वेस्टमेंट इक्विटी और 40 पर्सेंट डेट में लगाना शुरू करते हैं, तो यह प्रक्रिया री-बैलेंसिंग कहलाती है।

आमतौर पर, री-बैलेंसिंग तब की जाती है, जब इन्वेस्टर फाइनेंशियल गोल में बदलाव होता है या उसे जोखिम की संभावना होती है। कई फाइनेंशियल एक्सपर्ट भी समय-समय पर री-बैलेंसिंग पर ज़ोर देते हैं।

यह भी पढ़ें: डीमैट अकाउंट क्या है और इससे म्यूचुअल फंड खरीदने के क्या फायदे हैं?

पोर्टफोलियो को री-बैलेंस कैसे किया जाता है?

अपने पोर्टफोलियो को दो तरीकों से री-बैलेंस किया जा सकता है। पहले तरीके में जिस एसेट क्लास में प्रॉफिट नहीं हो रहा उसमें अतिरिक्त पैसा इन्वेस्ट करें। वहीं दूसरे तरीके में, जिस एसेट क्लास में मुनाफा हो रहा है, उससे पैसा निकाल कर उस एसेट क्लास में लगाए जो नुकसान झेल रहा है।

पोर्टफोलियो को री-बैलेंस करना क्यों ज़रूरी है?

पोर्टफोलियो को री-बैलेंस करना एक बड़ा फैसला है क्योंकि अपने ऑरिजनल गोल्स को अचीव करने के लिए कई बार आपको फायदे वाले स्टॉक्स को बेचना पड़ सकता है, ऐसे में आखिर पोर्टफोलियो को री-बैलेंस क्यों ज़रूरी है:-

  • ऑरिजनल एसेट एलोकेशन को बनाए रखता है: यह आपके जोखिम उठाने की क्षमता और निवेश के उद्देश्य के आधार पर ऑरिजनल गोल्स को प्राप्त करने में मदद करता है।
  • रिस्क मैनेज करने में मदद करता है: री-बैलेंसिंग रिस्क को मैनेज करने में मदद करता है। यह आपको अधिक रिस्क वाले एसेट क्लास में निवेश करने से रोकता है और अन्य एसेट क्लास में अपनी इंवेस्टमेंट को डायवर्सिफाइ करने में मदद करता है।
  • नई इन्वेस्टमेंट स्ट्रेटजी बनाने में उपयोगी: यह नए इन्वेस्टमेंट स्ट्रेटजी को लागू करने में मदद करता है, क्योंकि आपकी उम्र बढ़ने के साथ रिस्क उठाने की क्षमता और फाइनेंशियल उद्देश्य बदलते रहते हैं जिससे आपको पोर्टफोलियो में कुछ बदलाव करने या नई स्ट्रेटजी के साथ इन्वेस्ट करने की ज़रूरत पड़ सकती है, जिसमें रीबैलेंसिंग आपकी मदद करती है।
  • कम रिस्क, ज्यादा रिटर्न: रीबैलेंसिंग करते समय उन एसेट को खरीदा जाता है जिनका मूल्य कम हो गया है और जिन एसेट की कीमत बढ़ी है उसे बेचा जाता है, जिससे ज्यादा मुनाफा कमाने में मदद मिलती है।

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पोर्टफोलियो को री-बैलेंस करने के क्या फायदे और नुकसान हैं?

ज्यादातर लोग रिस्क कम करने और बेहतर रिटर्न पाने के लिए पोर्टफोलियो को री-बैलेंस करते हैं। ज़रूरी नहीं है कि री-बैलेंस के ज़रिए आप अपने उद्देश्यों को पूरा कर पाएंगे, ऐसा भी हो सकता है कि री-बैलेंस करने पर आपको नुकसान उठाना पड़े। पोर्टोफोलियो को री-बैलेंस करने के अपने फायदे और नुकसान हैं, सही फैसला लेने के लिए इन्हें जान लें:-

री-बैलेंसिंग के फायदें

  • री-बैलेंसिंग आपको रिस्क और रिटर्न के बीच संतुलन बनाए रखने में मदद करता है।
  • बाज़ार में उतार-चढ़ाव की वजह से नुकसान की संंभावना बनी रहती है, री-बैलेंसिंग इसे कम करने में मदद करता है।
  • अगर आप सही तरीके से अपने एसेट को एलोकेट करते हैं, तो इससे आपको बेहतर रिटर्न मिल सकता है।

री-बैलेंसिंग के नुकसान

  • बार-बार री-बैलेंसिंग करने पर ट्रांजैक्शन कॉस्ट लगता है जिससे नुकसान हो सकता है, क्योंकि री-बैलेंसिंग के दौरान आपको कुछ शेयर्स को बेचना और कुछ को खरीदना पड़ता है, जिसमें ब्रोकरेज चार्जेस समेत कई तरह के चार्ज़ेस लगते हैं।
  • अगर किसी एसेट में लगातर मुनाफा हो रहा है, री-बैलेंसिंग करने से आप जो लाभ मिल रहा है उसे गँवा देते हैं।
  • अगर गलत समय पर री-बैलेसिंग की जाती है, तो इससे नुकसान हो सकता है।

जैसा कि ऊपर बताया गया है पोर्टफोलियो री-बैलेंसिंग सिर्फ रिटर्न जनरेट करने के लिए नहीं बल्कि रिस्क को कम करने के लिए भी की जाती है। इसे करते समय बाज़ार की उठापटक, अपने फाइनेंशियल गोल्स और अपने रिस्क उठाने की क्षमता का ध्यान रखना चाहिए। साथ ही, री-बैलेंसिंग के दौरान ट्रांजैक्शन कॉस्ट जैसे ब्रोकरेज चार्ज़ेस, टैक्स आदि में कितना खर्चा आएगा, यह ज़रूर चेक कर लेना चाहिए।

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